गुरुकुल के पास ही रहेंगे गुरुजी नई शिक्षा नीति-2020

देहरादून। स्कूलों में बच्चे छुट्टी के लिए आतुर रहते ही हैं, लेकिन अनेक स्कूलों में गुरु जी को घर जाने की जल्दी विद्यार्थियों से अधिक रहती है। कारण कि उन्हें स्कूलों से मीलों दूर आपने सुविधायुक्त ठिकाने पर जाना होता है। …..परंतु अब ऐसा नहीं चल पाएगा। नई शिक्षा नीति में व्यवस्था है कि शिक्षक को ग्रामीण इलाके के विद्यालयों के निकट ही प्रवास करना होगा। उनके लिए केंद्रीय विद्यालयों की तर्ज पर आवासीय क्वाटर बनाए जाएंगे।

भारत के ग्रामीण इलाकों की शिक्षा व्यवस्था में अनेक खामियां रही हैं। कभी स्कूलों‌ सुविधाओं का अभाव तो कभी अध्यापक नहीं। विगत कुछ सालों से शिक्षकों की तैनाती की व्यवस्था पटरी पर आने लगी थी, लेकिन दूर-दराज के शिक्षक गांवों‌ में रहने को तैयार नहीं। जिस गांव के बच्चों की बदौलत उनकी जीविका चलती है, वह गांव उन्हें रहने लायक नहीं लगता। वे अपने बच्चों को उस गांव के सरकारी स्कूल में नहीं पढा़ते। इसलिए शहरों में किराये का कमरा लेकर रहते हैं।
उन्हें शहर से गांव के स्कूल पहुंचने में दो से लगभग तीन घंटे तक लग जाते हैं। तीन घंटे की यात्रा करने के बाद टीचर के पढा़ने की क्षमता का प्रभावित होना स्वाभाविक है। साथ ही वह आने-जाने की जल्दी के फेर में मन से भी नहीं पढ़ा पाएगा।
गौरतलब है कि उत्तराखंड का अधिकांश भाग पहाड़ी है। पहाड़ के ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में शिक्षक रहना नहीं चाहते। तैनाती मिल गई तो वे शहरों से अप-डाउन करते हैं। गांवों में अप-डाउन की स्थिति से शिक्षण व्यवस्था प्रभावित है। यहां लगभग हर स्कूल के लिए एक-दो मैक्स या सूमो गाडियां लगी रहती हैं।
आज से लगभग डेढ़ दशक तक ऐसा नहीं था। शिक्षक आठ घंटियां पढा़ने के बाद बच्चों के साथ खेलते भी थे। स्कूलों में देर शाम तक गतिविधियां चलती थीं, लेकिन अब छुट्टी होते ही स्कूलों में सन्नाटा पसर जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा।
शिक्षा नीति 2020 में प्रावधान किया गया है कि शिक्षकों को ग्रामीण इलाकों में अपने विद्यालयों के पास ही रहना होगा। सरकार उन्हें आवास सुविधा उपलब्ध कराएगी।
इस व्यवस्था का एक बड़ा लाभ यह होगा कि स्कूलों के आसपास के गांवों का दूध, सब्जी, फल इत्यादि की खपत गांव में ही हो जाएगी और लोग दुग्ध, सब्जी उत्पादन के प्रति प्रेरित होंगे। गांवों के सन्नाटे को तोड़ने में भी यह पहल कारगर साबित होगी।
इस संबंध में भारत सरकार के शिक्षा मंत्री डाॅ.रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का कहना है कि कोई भी शिक्षक अपने विद्यालय का संरक्षक होता है, उसे विद्यालय में पूरा का पूरा समय बिताना चाहिए। स्कूल के भौतिक, भौगोलिक और शैक्षिक वातावरण को बनाना और संवारना शिक्षक का नैतिक दायित्व है। अतः उसे दिन में विद्यालय में समय बिताने के साथ ही बाकी समय स्कूल के निकट प्रवास करना चाहिए। इस दृष्टिकोण से ही गांवों में स्कूलों के निकट शिक्षकों का प्रवास करना अनिवार्य किया गया है।

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