दो रावत भाई-भाई और तीसरा रावत उज्याडू बैल

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हरीश रावत के मन में त्रिवेंद्र के प्रति संवेदना तो हरक सिंह के प्रति गुस्सा

देहरादूनः पूर्व मुख्यमंत्री can हरीश रावत को इन दिनों राजनीतिक बयानबाजी का बढ़िया स्रोत, बहाना और मौका मिल गया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्रसिंह रावत के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश के बाद फुल फाॅम में आए हरीश रावत ने एक तीर से दो नहीं, तीन निशाने साध डाले। उन्होंने त्रिवेंद्र और उमेश के साथ ही संकेतों ही संकेतों में उन हरक सिंह रावत के खिलाफ भी जमकर भड़ास निकाल डाली, जिनके कारण उनके कथित स्टिंग का खुलासा हुआ था और उन्हें अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कुछ दिन ’सिर कटे सीएम’ की तरह सत्ता में रहते हुए भी सत्ता का उपयोग नहीं करना पड़ा था। हरीश रावत मौजूदा हालत पर भाजपा पर करारा प्रहार करने से नहीं चूकते, लेकिन साथ ही सरकार को यह ताकीद भी करते हैं कि राज्य में स्टिंग की इस मलिन संस्कृति से छुटकारा पाना जरूरी है। स्टिंग प्रकरण पर त्रिवेंद्र के प्रति हरीश की हल्की हमदर्दी यह बताने के लिए काफी है कि हरीश रावत भी ’पवित्र’ नहीं हैं, साथ ही हरक सिंह एंड कंपनी के प्रति जहर उगलना साबित करता है कि वे अपने जमाने के स्टिंग प्रकरण पर हरक सिंह से खासे खफा हैं।


त्रिवेंद्र सिंह रावत की सीबीआई जांच के आदेश और इसके बाद उनके सुप्रीम कोर्ट जाने की घटना से उत्तराखंड में सियासी भूचाल आ गया था। इस शांत राज्य की सियासी फिजाओं में अचानक जोर का तूफान आ गया। हरीश ने इस प्रकरण के बाद जो बात कही, उसमें उनके सियासी अतीत की कमजोरियां तो झलक ही गयीं, यह भी पता चल गया कि उनके दिल एक कोने में ’स्टिंग पीड़ित’ त्रिवेंद्र रावत के प्रति भी हल्की संवेदना है। हालांकि वे चिर-परिचित अंदाज में भाजपा की आलोचना करने से नहीं चूकने वाले हरीश यह कहने से भी नहीं चूकते कि भाजपा की इस सरकार का जन्म उक्त स्टिंगबाज कलाकार के गर्भ से ही हुआ है। आशय साफ है कि यदि हरीश रावत का स्टिंग नहीं किया जाता तो कांग्रेस दुबारा सत्ता में आ जाती। यानी हरीश रावत की कमियों अथवा गलतियों के कारण कांग्रेस सत्ता में आने से वंचित रह गयी। हरीश रावत को इस बात का मलाल है कि स्टिंग के मुख्य सूत्रधार हरकसिंह रावत ने उन्हें तो धोखा दिया ही, वे अब भाजपा में रहकर भी अपनी चालों से बाज नहीं आ रहे हैं। इसलिए वे त्रिवेंद्र सिंह रावत को सलाह देते हैं कि स्टिंग कल्चर के संरक्षक अपनी पार्टी के नेताओं को बेनकाब करिए। हरीश यह भी चेतावनी देते हैं कि स्टिंगबाजों और स्टिंगबाजों के संरक्षकों उज्याडू विशेषज्ञों को आलिंगनबद्ध करने को कहीं बाहें आतुर हैं। इसका एक अर्थ यह भी है कि हरीश रावत के रहते हरक सिंह रावत के लिए फिलहाल कांग्रेस में रहना तो क्या, जाना भी आसान नहीं है।
कांग्रेस छोड़ भाजपा में गए नेताओं को हरीश रावत ’उज्याडू बैल’ की संज्ञा देते हैं। इसका आशय है कि इधर-उधर मुंह मारने वाला, अनुशासनहीन और धमाचैकड़ी मचाने वाला। उनका प्रमुख संकेत हरकसिंह की ओर ही है। गौरतलब है कि हरक सिंह रावत की इन दिनों राज्य सरकार में ’बुरी गत’ हो रखी है। उन्हें हाल ही में कर्मकार बोर्ड अध्यक्ष पद से हटाया गया और इसके कुछ दिन बाद उनकी खास माने जाने वाली दमयंती रावत की कुर्सी भी छीनी गयी। शायद हरीश रावत इस प्रकरण पर अत्यधिक खुश हों, इसलिए वे त्रिवेंद्र रावत की प्रशंसा करते हैं कि आपने हमारी पार्टी से गए उज्याडू बैलों को नियंत्रण में रखा हुआ है। यह भी बता दें कि कुछ दिन पहले हरक सिंह ने यह घोषणा कर डाली थी कि वे 2022 में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। इस घोषणा का इस समय कोई तुक और महत्त्व नहीं था। हालांकि कयास लगाए जा रहे थे कि इसके पीछे हरक सिंह रावत की खुद को या फिर विजय बहुगुणा को राज्यसभा भेजने के लिए सरकार पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाना था, लेकिन हरक सिंह इस पैंतरे में फेल हो गए।
बहरहाल, हरीश रावत अब अपने स्टिंग प्रकरण पर लाख सफाई दें, लेकिन उनकी बात पर अब यकीन करने का कोई आधार नहीं है। मामला 25-25 करोड़ का हो या फिर हरीश रावत का यह कहना कि ’मैं आंखें बंद कर दूंगा’, ये बातें स्टिंग की वीडियो में साफ-साफ दिखाई और सुनाई देती हैं। जाहिर-सी बात है कि यदि हरीश ईमानदार और कड़क मुख्यमंत्री होते तो ऐसी कोई बात ही नहीं करते। यदि वे साफ कह देते कि मैं किसी को एक पैसा भी नहीं दे सकता, चाहे सरकार रहे या जाए तो फिर उस स्टिंग का महत्त्व ही खत्म हो जाता है और हरीश को उत्तराखंड की जनता सिर आंखों पर बैठाती।
यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि तब हरीश की सरकार का साथ देने वाले पीडीएफ के कुछ विधायकों को हरीश रावत ने उपकृत किया था। इसके तहत राज्य के कुछ क्षेत्रों को ओबीसी तक घोषित किया गया था। इसके क्या दूरगामी परिणाम होंगे, शायद हरीश रावत ने इसके बारे में सोचा भी न हो या फिर सोचकर अनदेखाकर दिया हो।

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